शिल्पी-गौतम हत्याकांड: लालू यादव के जंगलराज की अनसुलझी दास्तान

बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव एक ऐसा नाम है, जिसने न केवल राज्य की सियासत को दशकों तक प्रभावित किया, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री और बाद में 2004 से 2009 तक केंद्रीय रेल मंत्री रहे लालू यादव को उनके समर्थक सामाजिक न्याय का प्रतीक मानते हैं। उनकी नीतियों ने पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, उनके शासनकाल को लेकर विवाद भी कम नहीं रहे। उनके विरोधी उनके शासन को ‘जंगलराज’ कहकर आलोचना करते हैं, जिसमें अपराध, अपहरण और कानून-व्यवस्था की बदहाली के आरोप लगाए जाते हैं।

शिल्पी-गौतम हत्याकांड

इन विवादों में एक ऐसा मामला है, जिसने न केवल बिहार की सियासत को हिलाकर रख दिया, बल्कि आज भी अनसुलझे सवालों के साथ चर्चा में बना हुआ है। यह है शिल्पी जैन और गौतम सिंह हत्याकांड। हाल ही में एक पॉडकास्ट में झारखंड बीजेपी के इलेक्शन मैनेजमेंट हेड मृत्युंजय शर्मा ने इस मामले से जुड़े कई चौंकाने वाले खुलासे किए, जिसने पुराने जख्मों को फिर से ताजा कर दिया। यह लेख इस हाई-प्रोफाइल केस की पूरी कहानी, इसके रहस्य, और बिहार के उस दौर की सियासी तस्वीर को बयान करता है।

शिल्पी-गौतम हत्याकांड का परिचय

3 जुलाई 1999 को पटना के फ्रेजर रोड पर स्थित क्वार्टर नंबर 12 के पास एक बंद गैरेज में एक मारुति कार में दो शव मिले। इन शवों की पहचान शिल्पी जैन और गौतम सिंह के रूप में हुई। शिल्पी जैन, पटना के मशहूर कमला स्टोर्स के मालिक उज्जवल कुमार जैन की बेटी थीं, जिन्होंने ‘मिस पटना’ का खिताब भी जीता था। दूसरी ओर, गौतम सिंह लंदन में पढ़ाई करने वाला एक युवक था, जिसके पिता डॉ. बी.एन. सिंह राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बड़े नेताओं के करीबी माने जाते थे। गौतम RJD के यूथ विंग से जुड़ा था और उसकी दोस्ती लालू यादव के साले और तत्कालीन विधायक साधु यादव से थी

यह गैरेज साधु यादव के सरकारी आवास के पास था, जो उस समय बिहार की सत्तारूढ़ पार्टी RJD के विधायक थे और लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी की सरकार में प्रभावशाली शख्सियत माने जाते थे। इस घटना ने पूरे शहर में सनसनी फैला दी और जल्द ही यह मामला सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया।

क्या हुआ था उस दिन?

मृत्युंजय शर्मा के अनुसार, जिस दिन यह घटना हुई, शिल्पी जैन अपनी कॉलेज जा रही थीं। तभी साधु यादव के कुछ दोस्तों ने उन्हें अपनी गाड़ी में ड्रॉप करने का ऑफर दिया। लेकिन इसके बजाय, उसे सीधे उस गैरेज में ले जाया गया, जहां साधु यादव और उनके कुछ साथी पहले से मौजूद थे। शर्मा का दावा है कि शिल्पी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, और जब गौतम सिंह को इसकी भनक लगी, तो वह विरोध करने के लिए वहां पहुंचा। आरोप है कि दोनों को बांधकर पहले शिल्पी के साथ दरिंदगी की गई और फिर उनकी हत्या कर दी गई।

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पुलिस जब मौके पर पहुंची, तो उसने जल्दबाजी में इस मामले को आत्महत्या करार दे दिया। हैरानी की बात यह थी कि गौतम की बॉडी को बिना पोस्टमॉर्टम के रात में ही जला दिया गया, और जिस कार में शव मिले थे, उसे एक कांस्टेबल ने खुद ड्राइव करके थाने ले गया। इस प्रक्रिया में फिंगरप्रिंट और अन्य फॉरेंसिक साक्ष्य नष्ट हो गए।

पुलिस की जांच और सवालों का घेरा

पुलिस की जांच शुरू से ही सवालों के घेरे में थी। घटनास्थल से कार को ड्राइव करके ले जाना, बिना विसरा रिपोर्ट के आत्महत्या का दावा करना, और गौतम के शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करना—ये सभी कदम संदिग्ध थे। कहा जाता है कि पुलिस के पहुंचने से पहले साधु यादव के समर्थकों ने घटनास्थल पर हंगामा किया, जिससे सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ गई।

शिल्पी के परिवार ने इसे आत्महत्या मानने से इनकार कर दिया और दावा किया कि यह हत्या थी। उनके दबाव और विपक्ष के विरोध के बाद, सितंबर 1999 में यह मामला CBI को सौंपा गया। CBI की जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

CBI जांच और चौंकाने वाले खुलासे

CBI ने हैदराबाद में शिल्पी के योनि द्रव का डीएनए टेस्ट करवाया। जांच रिपोर्ट में पाया गया कि शिल्पी की मृत्यु से पहले उसके साथ कई लोगों ने बलात्कार किया था। इस खुलासे ने मामले को और गंभीर बना दिया। CBI ने साधु यादव से डीएनए सैंपल मांगा, ताकि इसे शिल्पी के डीएनए से मिलान किया जा सके, लेकिन साधु यादव ने सैंपल देने से मना कर दिया।

CBI की जांच के बावजूद, चार साल बाद, 2003 में, इस मामले को आत्महत्या करार देकर बंद कर दिया गया। CBI ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि शिल्पी और गौतम ने कार्बन मोनोऑक्साइड गैस के कारण आत्महत्या की थी। इस निष्कर्ष को शिल्पी के परिवार ने सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने दावा किया कि CBI ने राजनीतिक दबाव में गलत रिपोर्ट पेश की

शिल्पी के परिवार पर दबाव और भाई का अपहरण

शिल्पी के परिवार ने इस केस को दोबारा खोलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भारी दबाव का सामना करना पड़ा। 2006 में, शिल्पी के भाई प्रशांत जैन का अपहरण हो गया। हालांकि, कुछ समय बाद वह घर लौट आया, लेकिन इस अपहरण का कारण और इसके पीछे के लोग आज तक अज्ञात हैं। यह घटना इस बात का संकेत थी कि इस केस को दबाने के लिए हर संभव कोशिश की गई।

जंगलराज और साधु यादव की भूमिका

1990 से 2005 तक लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के शासनकाल को ‘जंगलराज’ के रूप में जाना जाता है। इस दौरान बिहार में अपराध, अपहरण, और माफिया राज का बोलबाला था। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 1990 से 2004 तक बिहार में अपहरण और हत्या जैसे अपराधों में वृद्धि हुई थी।

साधु यादव, जो लालू यादव के साले और राबड़ी देवी के भाई थे, इस दौर में एक प्रभावशाली शख्सियत थे। उन पर कई आपराधिक आरोप लगे, जिनमें शिल्पी-गौतम हत्याकांड सबसे चर्चित रहा। कहा जाता है कि साधु यादव का उस समय इतना रसूख था कि पुलिस और प्रशासन उनके सामने नतमस्तक था।

सुभाष यादव, लालू के एक अन्य साले, ने भी हाल ही में दावा किया कि उस दौर में अपहरण और फिरौती की डील्स सीएम हाउस में होती थीं। इन आरोपों ने लालू के शासनकाल की कानून-व्यवस्था पर फिर से सवाल उठाए हैं।

लालू यादव और जंगलराज की छवि

लालू यादव का शासनकाल सामाजिक न्याय के लिए जाना जाता है, लेकिन उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार, अपराध, और कानून-व्यवस्था की बदहाली के गंभीर आरोप भी लगे। चारा घोटाला, जिसमें लालू को 2013 में सजा हुई, ने उनके राजनीतिक करियर को बड़ा झटका दिया।

शिल्पी-गौतम हत्याकांड ने भी उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया। विपक्ष ने इस मामले को लालू और उनकी सरकार के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। यह केस बिहार के उस दौर की भयावह तस्वीर पेश करता है, जब सत्ता में बैठे लोग कानून से ऊपर समझे जाते थे।

शिल्पी-गौतम हत्याकांड बिहार के इतिहास का एक काला अध्याय है, जो सत्ता, अपराध, और राजनीतिक दबाव की कहानी बयान करता है। मृत्युंजय शर्मा के हालिया खुलासों ने इस मामले को फिर से सुर्खियों में ला दिया है, लेकिन सच्चाई अभी भी पर्दे के पीछे छिपी है। यह केस न केवल शिल्पी और गौतम के परिवारों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सबक है कि कानून और न्याय को कभी भी सत्ता के सामने झुकने नहीं देना चाहिए।

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