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मणिपुर में यौन हिंसा की जिस घटना के वीडियो ने पूरे देश को झकझोर दिया है, वह 4 मई, 2023 को घटी थी। उसी दिन मणिपुर सरकार के गृह विभाग नेप्रदेश में पूर्ण इंटरनेट ब्लैकआउट का आदेश जारी किया था। यह 3 मई के मोबाइल इंटरनेट बैन के आदेश का विस्तार ही था। 4 मई से मणिपुर में इंटरनेट पर पूर्ण प्रतिबंध के बाद वहां जो चल रहा था, उसके प्रति 70 दिनों से अधिक समय तक देश का ध्यान नहीं गया। मणिपुर के प्रति इस राष्ट्रीय उदासीनता के पीछे इंटरनेट बैन का बड़ा योगदान रहा।

जब 19 जुलाई को घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो उसके कुछ ही दिनों बाद मणिपुर हाई कोर्ट ने एक लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद राज्य में इंटरनेट सेवाओं को बहुत सीमित स्तर पर बहाल करने का आदेश दिया था। मणिपुर में इंटरनेट शटडाउन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक के बाद एक, तीन याचिकाएं डाली गईं लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने तीनों मौकों पर इस पर मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।आखिरकार 20 जुलाई को जब दो महिलाओं के साथ बर्बरता का वीडियो वायरल हुआ तब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया।

राज्य और केंद्र सरकारों में उच्च पदस्थ निर्वाचित अधिकारियों के यह कहने से कि गिरफ्तारी के लिए कड़ी कार्रवाई की जाएगी, वीडियो के वायरल होने का विभिन्न स्तरों पर निश्चित प्रभाव पड़ा है। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन यह भी सही है कि ऐसा केवल इंटरनेट पर बातचीत की शुरुआत और हिंसा की बेहद परेशान करने वाली तस्वीरों और वीडियो को साझा करने से ही संभव हो सका है। बेशक इस पर भी विचार होना चाहिए कि आखिर कैसे अफवाहों ने एक भीड़ को महिलाओं के साथ अत्याचार को उकसाया। 3 मई और 4 मई को इंटरनेट पर आंशिक रोक के आदेशों में यही इशारा किया गया था कि अफवाहों पर रोक के लिए यह जरूरी है।

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